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Dr.Lata Shrimali has distinguished herself as a premiere exponent of KP and Vedic astrology with Ph.D in Astrology, MA in Sanskrit/Jyotish, LL.B, from Rajasthan University and Vishisht Upakhya Astrology and Vastu from Jagatguru Ramanandacharya sanskrit University and Sangeet Visharad (Violin).

ॐ गं गणपतये नमः

“कलत्र भाव”

पुस्तक समीक्षा

मानव जीवन का प्रथम पुस्तकालय वेद है। इसके 6 अंगों में ज्योतिष शास्त्र को नेत्र की उपमा दी गई है। ज्योतिषशास्त्र के माध्यम से भूत, भविष्य, वर्तमान की घटनाओं को जानने एवं उनके निराकरण हेतु तंत्र मंत्र यंत्र आदि के माध्यम से सफल जीवन जीने के प्रयास किए जाते रहे हैं। कहा जाता है कि पहला सुख निरोगी काया, दूसरा सुख घर में माया, तीसरा सुख सुलक्षणा नारी अर्थात वैवाहिक सुख उत्तम होने पर व्यक्ति का जीवन सुखद एवं प्रगतिशील व्यतीत होता है एवं सुखी एवं प्रगतिशील जीवन से सुखी एवं प्रगतिशील समाज व अनंततोगत्वा प्रगतिशील राष्ट्र का निर्माण होता है।

वर्तमान समय में बदलती हुई वैवाहिक स्थितियों में प्रेम विवाह,अंतरजातीय विवाह, विवाह विच्छेद, लिव इन रिलेशनशिप, दुखी वैवाहिक जीवन आदि समाज में बढ़ते जा रहे हैं। इन्हीं विषयों पर “कलत्र भाव” नामक पुस्तक में लेखिका ज्योतिर्विद कृष्णामूर्ति पद्धति विशेषज्ञ डॉ लता श्रीमाली ने जन्मकुंडली के अति महत्वपूर्ण भाव सप्तम भाव पर लगभग 1000 कुंडलियों पर प्राचीन शास्त्र पाराशर पद्धति एवं बीसवीं शताब्दी की नक्षत्रों पर आधारित कृष्णामूर्ति पद्धति का तुलनात्मक अध्ययन एवं अनुसंधान कर शास्त्रोक्त उपायों द्वारा सुखी वैवाहिक जीवन प्रदान करने में ज्योतिषीय योगदान देने का एक अनूठा प्रयास किया है। ज्योतिष विषय में पी एच डी लेखिका डॉ लता श्रीमाली ने इस पुस्तक में सर्वप्रथम भगवान श्री गणेश एवं राजराजेश्वरी मां त्रिपुरसुंदरी तथा अपने पिता एवं गुरु केपी शिरोमणि श्री श्याम लाल  श्रीमाली, सेवानिवृत्त न्यायाधीश को सादर नमन करते हुए ज्योतिष शास्त्र में फलित विषय पर सप्तम भाव पर पाराशर व कृष्णमूर्ति पद्धति के द्वारा रचित सिद्धांतों यथा श्रीपति व प्लेसीडस पद्धतियों का उल्लेख व विवेचन करते हुए विषय की गहराइयों को छुआ है।

इस पुस्तक में लेखिका ने लगभग एक हजार कुंडलियों का संकलन करने के पश्चात उन कुंडलियों पर पाराशर एवं कृष्णामूर्ति पद्धति द्वारा फलित कर तुलनात्मक विवेचन कर निष्कर्ष निकालने का प्रयास किया है। तथा प्रत्येक विषय जैसे प्रेम विवाह, विधवा विवाह, बाल विवाह, दो विवाह, तलाक आदि की 5 -5 कुंडलियों पर दोनों पद्धतियों का फलित लेखन कर तुलनात्मक शोधपूर्ण कार्य किया है।

इस पुस्तक में 6 अध्याय हैं। प्रथम अध्याय में पाराशर एवं कृष्णमूर्ति पद्धति के फल कथन संबंधी सामान्य सिद्धांत है जिसके माध्यम से एक सामान्य व्यक्ति कृष्णामूर्ति पद्धति एवं पाराशर पद्धति द्वारा फल कथन करने हेतु आसानी से ज्योतिष सीख सकता है। द्वितीय अध्याय में भाव स्पष्ट से संबंधित विभिन्न सिद्धांत है एवं श्री पति पद्धति एवं प्लेसीडस पद्धति का तुलनात्मक अध्ययन दिया गया है। इसी प्रकार अन्य अध्यायों में कृष्णामूर्ति पद्धति से गुण मिलान एवं पाराशर पद्धति से गुण मिलान का तुलनात्मक विवेचन, जातक के विवाह का समय,उसका स्वभाव, चेहरा व्यवसाय, दिशा आदि के ज्ञान का कृष्णामूर्ति पद्धति एवं पाराशर पद्धति का तुलनात्मक विवेचन एवं विवाह के संबंध में शास्त्रों में दिए गए उपायों का उल्लेख किया गया है।

ज्योतिष शास्त्र में पाराशर पद्धति में वैवाहिक जीवन पर तथा इससे संबंधित अन्य विभिन्न विषयों पर अनेक पुस्तकें लिखी जा चुकी है एवं कृष्णामूर्ति पद्धति में अंग्रेजी में ही अधिकांश पुस्तकें उपलब्ध है अतः सप्तम भाव पर कृष्णामूर्ति पद्धति एवं पाराशर पद्धति पर तुलनात्मक शोध की संभवत हिंदी में यह प्रथम पुस्तक है। इसके अतिरिक्त लेखिका द्वारा कृष्णामूर्ति पद्धति में ग्रहों के मृत्यु भाग के संबंध में की गई शोधपूर्ण खोज भी महत्वपूर्ण है कि कौन सा ग्रह किस नक्षत्र में  होने पर मृत्यु भाग की श्रेणी में आता है। इस पुस्तक में कई रोचक बिंदु हैं जैसे कृष्णामूर्ति पद्धति में दो जुड़वा बालकों की 3 मिनट के अंतर पर उप नक्षत्र (सब लोर्ड) परिवर्तित होने पर जीवन कैसे परिवर्तित होता है, वैवाहिक जीवन में मंगल दोष का प्रभाव कितना होता है, आदि, क्योंकि लेखिका अनुसार कृष्णामूर्ति पद्धति में मंगल दोष को कोई स्थान नहीं है, पाराशर तथा कृष्णामूर्ति पद्धति में क्या योगायोग हो तो दो विवाह, प्रेम विवाह, तलाक आदि के योग बनते हैं, आदि जैसे कई बिंदुओं पर महत्वपूर्ण जानकारी इस पुस्तक में दी गयी है जो भारतीय समाज में मंगल दोष संबंधी कई भ्रांतियों को दूर करती है। यह पुस्तक ज्योतिष के सामान्य जिज्ञासु व्यक्तियों के लिए  हिंदी भाषा में कृष्णामूर्ति पद्धति से फलित सीखने में भी अति महत्वपूर्ण सिद्ध होगी। तथा पाराशर एवं कृष्णामूर्ति दोनों पद्धति से वैवाहिक जीवन में गुण मिलान करने हेतु भी उपयोगी सिद्ध होगी। ज्योतिष क्षेत्र में अनुसंधान कम हो रहे हैं ऐसे समय में लेखिका डॉ लता श्रीमाली का पाराशर एवं कृष्णामूर्ति दोनों पद्धतियों पर सप्तम भाव का अनुसंधान का कार्य प्रशंसनीय है।

पुस्तक का नाम:- कलत्र भाव
लेखिका:- डॉ लता श्रीमाली
पुस्तक का मूल्य:- ₹350

पुस्तक प्राप्ति स्थान एवं प्रकाशक :-
विनायक प्रकाशन 
डी-669 मालवीय नगर, जयपुर
+91 800 5828 928
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