मानव जीवन के सात सुखों में निरोगी काया को सर्वप्रथम सुख माना गया है तथा मानव जीवन के लक्ष्य चारों पुरुषार्थ धर्म,अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति के लिए भी शरीर का निरोगी रहना आवश्यक है। कहा भी गया है कि:-
शरीरमाधं खलु धर्मसाधनम्।
धर्मार्थकाममोक्षाणां:आरोग्यं मूलमूत्तमम।।
मनुष्य दो प्रकार के रोगों से पीड़ित होता है(1) आधि (2)व्याधि। हमारे जीवन में उत्पन्न होने वाले समस्त रोग संचित,प्रारब्ध एवं क्रियमाण कर्मों के परिणाम स्वरुप ही होते हैं। जन्मजात या पैतृक रूप से प्राप्त रोग संचित कर्मों के परिणाम स्वरुप होते हैं जिनका जन्म कुंडली में विद्यमान ग्रहों के अनुसार पता लगाया जा सकता है।यद्यपि रोगों का उपचार चिकित्सीय विज्ञान द्वारा किया जाता है किंतु कहावत है कि spirituality begins when science ends.(जहां विज्ञान असफल होता है वहां अध्यात्म का शुभारंभ होता है।)
प्राचीन सिद्धांत “यत पिंडे तत ब्रह्मांडे” के अनुसार जो ब्रह्मांड में है वही हमारे शरीर में है अर्थात पंच महाभूत तत्व आकाश, पृथ्वी, जल,अग्नि, वायु तत्व जो ब्रह्मांड में स्थित है वे ही पंचतत्व हमारे शरीर में स्थित हैं। प्रत्येक ग्रह, प्रत्येक राशि इन्ही पंच तत्वों का प्रतिनिधित्व करते हैं जैसे व्यक्ति के जन्म के समय एवं तत्पश्चात गोचर के समय जो ग्रह अधिक रश्मि वाला या कम रश्मि वाला होता है उसी अनुसार मनुष्य पर पड़ने वाली ग्रहों की रश्मियों से उस विशेष तत्व की कमी या अधिकता होती है व उसी अनुसार व्यक्ति तत्व की कमी या अधिकता से शारीरिक एवं मानसिक रोग से पीड़ित होता है कहा गया है कि:-
एते ग्रहा बलिष्ठा: प्रसूतिकाले नृणां स्वमूर्तिम।
कुर्युदेहं नियतं बहवश्च समागता मिश्रम।।
यही कारण है कि गोचरीय ग्रहों का समस्त विश्व के प्राणियों पर प्रभाव पडता है।
रोग का आरम्भ:-जन्मकुंडली द्वारा रोगों को जानने के लिए संपूर्ण जन्मपत्रिका को एक काल पुरुष माना गया है। जन्मकुण्डली का प्रत्येक भाव,उसमें स्थित राशि एवं उसमें स्थित ग्रह या दृष्टि डालने वाले ग्रह अपने अपने तत्वों के अनुसार व्यक्ति के स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं। उसी अनुसार रोग होता है एवं व्यक्ति उस रोग से पीड़ित होता है।
जन्मकुण्डली में छठे भाव के स्वामी ग्रह की दशा, उससे संबंध रखने वाले ग्रह की दशा, छठे भाव में स्थित ग्रह की दशा में रोग होता है। रोग का कारक शनि है ऐसी स्थिति में इसकी दशा होने पर विशेष रूप से शनि के छठे भाव के स्वामी होने की दशा में रोग उत्पन्न होता है। त्रिक भावों 6, 8,12 भाव के स्वामी ग्रह की दशा में भी रोग उत्पन्न होता है यदि उन भाव पर शुभ ग्रह की दृष्टि न हो। द्वितीयेश या सप्तमेश की दशा अंतर्दशा में विशेष रूप से जब ये ग्रह निर्बल हों और त्रिक भावों में या उनके स्वामी के साथ स्थित हों तब भी रोग उत्पन्न होता है।
रोग से मुक्ति:- नैसर्गिक शुभ ग्रह, केंद्र त्रिकोण के स्वामी की दशा, अंतर्दशा, केंद्र त्रिकोण से संबंध रखने वाले ग्रह, लग्नेश का मित्र या अन्य प्रकार से बली शुभ ग्रह अपनी दशा में आरोग्य लाभ देते हैं। गोचर से लग्न का स्वामी ग्रह यदि लग्नेश या लग्न से दृष्टि संबंध या युति करे या दशानाथ गोचर में शुभ ग्रहों से दृष्टि या युति करे या गोचर से केंद्र या त्रिकोण में जाये तो जातक को स्वास्थ्य लाभ होता है।
व्यक्ति के संपूर्ण जीवन में उसके स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले भाव लग्न, द्वितीय, तृतीय, छठा,सातवां, आठवां व बारहवां भाव है। लग्न शरीर का प्रतिनिधित्व करता है। अतः यदि लग्नेश पाप ग्रह से युक्त होकर 6, 8, 12वें भाव में कहीं भी स्थित हो या शत्रु के नक्षत्र में हो तो व्यक्ति को शारीरिक सुख प्राप्त नहीं होता है। तीसरा एवं आठवां भाव आयु स्थान एवं दूसरा एवं सप्तम भाव मारक भाव माना गया है तथा लग्न से 12वां भाव शरीर के व्यय को दर्शाता है। रोग का निर्णय करने में फलदीपिका ग्रंथकार ने कहा है कि:-
रोगस्य चिन्तामपि रोगभावस्थितैग्रहैर्वा व्ययमृत्युसंस्थै:।
रोगश्वरेणापि तदन्वितैर्वा द्वित्र्यादिसम्वादवशाद्वदन्तु।।
अर्थात 6,8,12वें भाव में स्थित ग्रह, छठे भाव के स्वामी की स्थिति,उसके साथ स्थित ग्रह रोग के निर्णय में सहायक होते हैं। यदि छठे भाव या उसमें स्थित ग्रह या दृष्टि डालने वाले ग्रह का लग्न व लग्न में स्थित ग्रह से संबंध हो तो रोग उत्पन्न होता है यदि इन दोनों भावों में स्थित ग्रहों का आठवें भाव से भी संबंध हो या रोग के कारक शनि से संबंध हो तो वह असाध्य रोग बन जाता है तथा बारहवें भाव से भी संबंध बनने पर चिकित्सालय में भर्ती होने की स्थिति बनती है।
इस प्रकार जन्मकुण्डली के भावों की राशि,उसमें स्थित ग्रह, दृष्टि डालने वाले ग्रह, ग्रहों की सजल निर्जल संज्ञा, ग्रह की अवस्था, तत्व,नक्षत्र आदि को दृष्टिगत रखते हुए रोग विचार किया जाता है। जन्म के समय जातक का जो ग्रह व भाव निर्बल होगा उस ग्रह की धातु निर्बल होगी व उसी से संबंधित अंग पीड़ित होगा। जन्म समय व गोचर में जब कोई ग्रह प्रतिकूल फलदाता होता है तो वह व्यक्ति के उसी अंग में अपने अशुभ फल के कारण पीड़ा पहुंचाता है।
कोरोना वायरस रोग:- कोरोना वायरस रोग जुखाम, खांसी, ज्वर एवं श्वसन तंत्र पर प्रभाव डालने वाला रोग है।ज्योतिषीय दृष्टि से काल पुरुष की कुंडली में तृतीय भाव की राशि मिथुन राशि है। श्वसन तंत्र एवं फेफड़ों, श्वास, दमा,खांसी पर मिथुन राशि का अधिकार है एवं यह वायु तत्व, उष्ण प्रकृति की एवं दिवाबली राशि है। ग्रहों में शनि रोग का प्रबल कारक है तथा श्वास नली पर इसका अधिकार है। राहु को शरीर का ऊपरी हिस्सा उसमें भी मुंह, नाक, कान, गले एवं केतु को संक्रामक रोग का कारक माना गया है। बुध को फेफड़ों का कारक माना गया है। मंगल ग्रह को नाक, स्वादेन्द्रिय तथा चंद्रमा को ऑक्सीजन, बृहस्पति को कफ एवं रोग वृद्धि करने वाला ग्रह माना गया है।
कृष्णमूर्ति पद्धति के अनुसार कोरोना वायरस रोग पर विचार करें तो राहु अपनी उच्च राशि मिथुन में 11 सितंबर, 2019 को स्वयं के नक्षत्र आद्रा में आने तथा बृहस्पति के 5 नवंबर,2019 को धनु राशि में केतु के नक्षत्र में आने तथा शनि के धनु राशि में 27 दिसंबर, 2019 को सूर्य के उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में आने के कारण एवं राहु की मिथुन राशि में और शेष अधिकांश ग्रहों की धनु राशि में परस्पर दृष्टि होने के कारण इस वायरस की उत्पत्ति हुई। शनि केतु की युति होने पर युद्ध होने के योग बनते हैं। 24 जनवरी, 2020 तक की अवधि में जहां भारत पाकिस्तान बालाकोट स्ट्राइक के रूप में युद्ध,अमेरिका ईरान इराक के मध्य मिसाइल युद्ध हुआ।उसी प्रकार यह वायरस रोग भी शनि केतु की युति के कारण 24 जनवरी,2020 से पूर्व केमिकल युद्ध के रूप में किसी एक देश संभवतः चीन के द्वारा आरंभ fd;k tk चुका है। 24 जनवरी के पश्चात तो वायरस के रूप में युद्ध के परिणाम सामने आ रहे हैं।
भारत की 15 अगस्त,1947 की वृष लग्न की कुंडली के अनुसार लग्न एवं छठे भाव रोग का स्वामी शुक्र तथा रोग का कारक शनि अस्त है। द्वितीय भाव गले, नाक,आदि का प्रतिनिधित्व करता है एवं भारत की कुण्डली में द्वितीय भाव में स्थित मिथुन राशि भी गले, नाक, खांसी,आदि का प्रतिनिधित्व करती है। द्वितीय भाव से राहु का गोचर भ्रमण एवं रोग भाव के स्वामी शुक्र के 28 मार्च से भारत की वृष लग्न की कुंडली में लग्न में 1 अगस्त तक गोचर भ्रमण के कारण रोग से जनता अधिक पीड़ित रहh।15 अप्रैल से 15 मई तक चतुर्थ भाव के स्वामी सूर्य के व्यय भाव में जाने एवं शनि मंगल की युति के कारण एवं 15 मई से 15 जून चतुर्थ भाव के स्वामी सूर्य के रोग भाव के स्वामी शुक्र के साथ युति के कारण भी जनता रोग से पीड़ित एवं जनहानि रहh।15 जून से 15 जुलाई सूर्य का राहु पर से गोचर भ्रमण us जनता में रोग संबंधी भय व भ्रम का वातावरण cuk;s रखk। कोरोना वायरस रोग का स॔क्रमण शनि के सूर्य के नक्षत्र में दिसम्बर,2019 को आने पर आरम्भ हुआ था।
रोग के संबंध में यदि विचार करें तो 22 जनवरी, 2021 के पश्चात शनि के चंद्रमा एवं मार्च, 2022 ds पश्चात eaxy के नक्षत्र में जाने पर ही विश्व के पटल पर इस वायरस का प्रभाव क्षीण होगा।
निवारण:- नीति शास्त्रानुसार –
जन्मांतर कृतं पापं व्याधिरूपेण जायते।
तत्त शान्तिरौषधैर्दानैर्जपार्चनाभि:।।
मनुष्य को पूर्व जन्म के पाप कर्मों को भोगने के लिए असाध्य रोग का सामना करना पड़ता है किंतु जप तप मंत्र तंत्र होम दान व अच्छे कर्म कर असाध्य रोगों पर विजय प्राप्त की जा सकती है। जातक का भाग्येश यदि बली हो तो उपचार से तुरंत राहत मिलती है अन्यथा उपचार का फल विलंब से प्राप्त होता है।
।।जय गणेश।।